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Uttarakhand Panchayat Election 2025 : आरक्षण में गड़बड़ी पर हाईकोर्ट सख्त, उत्तराखंड पंचायत चुनाव पर लगी रोक

(Tehelka Desk)Uttarakhand Panchayat Election 2025 :

उत्तराखंड में होने वाले उत्तराखंड पंचायत चुनाव को लेकर बड़ा अपडेट सामने आया है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इन चुनावों पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है और आदेश दिया है कि राज्य सरकार को आरक्षण प्रक्रिया को दोबारा निर्धारित करना होगा। अदालत ने स्पष्ट किया है कि जब तक आरक्षण व्यवस्था नियमों के तहत पूरी तरह पारदर्शी नहीं होती, तब तक चुनाव की अधिसूचना जारी नहीं की जा सकती।

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यह फैसला राज्य में पंचायत चुनाव प्रक्रिया को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है, क्योंकि इससे पहले ही चुनाव तैयारियां शुरू हो चुकी थीं।कोर्ट ने क्या कहा और इसका असर क्या हो सकता है।

Uttarakhand Panchayat Election 2025 :  क्या है पूरा मामला?

राज्य सरकार ने साल 2025 के पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण सूची जारी की थी जिसमें ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायतों के पदों पर आरक्षित और अनारक्षित वर्गों के लिए सीटें तय की गई थीं।

लेकिन आरक्षण प्रक्रिया को लेकर कई शिकायतें सामने आईं — जिनमें आरोप लगाया गया कि

  • कई सीटों पर एक ही वर्ग को बार-बार आरक्षण दिया गया
  • महिलाओं और अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए यथोचित चक्रानुसार आरक्षण नहीं किया गया
  • आरक्षण का रोटेशन फॉर्मूला पारदर्शी नहीं था

इस मामले को लेकर कई जनहित याचिकाएं नैनीताल हाईकोर्ट में दाखिल की गई थीं।

Uttarakhand Panchayat Election 2025 : हाईकोर्ट ने क्या कहा?

हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद स्पष्ट निर्देश दिए कि

  • पंचायत चुनावों में आरक्षण प्रक्रिया नियमों और संविधान के अनुरूप होनी चाहिए
  • राज्य सरकार को  नए सिरे से आरक्षण सूची बनानी होगी
  • जब तक नया आरक्षण आदेश जारी नहीं होता, चुनाव प्रक्रिया पर रोक रहेगी
  • सरकार को स्थानीय स्वशासन अधिनियम और 1994 के पंचायती राज एक्ट के तहत प्रक्रिया अपनानी होगी

न्यायालय ने कहा कि लोकतंत्र की मूल आत्मा निष्पक्षता और समानता में है, और यदि आरक्षण व्यवस्था ही पारदर्शी नहीं होगी तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित होगी।

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Uttarakhand Panchayat Election 2025 : चुनाव आयोग पर बढ़ा दबाव

उत्तराखंड राज्य निर्वाचन आयोग ने पहले ही पंचायत चुनावों की संभावित समयसीमा अगस्त-सितंबर 2025 तय कर ली थी। कई जिलों में चुनाव कर्मचारियों का प्रशिक्षण भी शुरू हो चुका था। लेकिन हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद अब पूरी प्रक्रिया स्थगित कर दी गई है।

चुनाव आयोग को अब :

  • राज्य सरकार से संशोधित आरक्षण सूची प्राप्त करनी होगी
  • नई अधिसूचना जारी करनी होगी
  • फिर से चुनाव कार्यक्रम निर्धारित करना होगा

इससे पंचायत चुनावों में कम से कम 2 से 3 महीने की देरी तय मानी जा रही है।

Uttarakhand Panchayat Election 2025 :  राजनीति  में मची हलचल

हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य की राजनीति में हलचल मच गई है। विपक्षी दलों ने इसे सरकार की लापरवाही और संवैधानिक प्रक्रिया की अनदेखी बताया है।

स्थानीय स्तर पर क्या असर पड़ेगा?

पंचायत चुनावों की देरी का असर ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों और जिला परिषदों के कामकाज पर पड़ सकता है। मौजूदा प्रतिनिधियों का कार्यकाल यदि समाप्त हो गया, तो प्रशासन को प्रभारी अधिकारियों के ज़रिए कार्य संचालन करना पड़ेगा।

इससे:

  • स्थानीय विकास योजनाओं की रफ्तार धीमी पड़ सकती है
  • जनहित से जुड़े कार्यों में निर्णय लेने में विलंब हो सकता है
  • ग्रामीण क्षेत्र की जनता को समस्याओं के समाधान में दिक्कत आ सकती है

Uttarakhand Panchayat Election 2025 :  आरक्षण प्रक्रिया कैसे होती है?

पंचायत चुनावों में आरक्षण का निर्धारण राज्य सरकार आबादी और पिछली आरक्षित सीटों के आधार पर करती है। इसमें अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग और महिलाओं के लिए नियत प्रतिशत के अनुसार सीटों का आवंटन होता है।

इस प्रक्रिया में:

  • रोटेशन प्रणाली अपनाई जाती है, ताकि हर वर्ग को हर चक्र में अवसर मिले
  • पिछले चुनाव में जिन सीटों पर आरक्षण था, उन्हें इस बार अनारक्षित किया जाता है
  • हर पंचायत क्षेत्र की जनसंख्या और जातिगत स्थिति का विश्लेषण किया जाता है

हाईकोर्ट ने पाया कि उत्तराखंड सरकार ने इस प्रक्रिया में स्पष्टता और निष्पक्षता नहीं बरती, जिससे कई वर्गों के साथ भेदभाव की आशंका बनी।

राज्य सरकार को अब:

  • नई आरक्षण सूची तैयार करनी होगी
  • संभावित आपत्तियां आमंत्रित करनी होंगी
  • समयबद्ध तरीके से चुनाव आयोग को सूची भेजनी होगी

यह एक समय लेने वाली प्रक्रिया है और इसकी वजह से पंचायत चुनावों में विलंब होगा। हालांकि सरकार यह दावा कर रही है कि वह जल्द से जल्द कोर्ट के निर्देशों का पालन कर पूरी प्रक्रिया दोबारा शुरू करेगी।

उत्तराखंड में पंचायत चुनाव लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूती देने का एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। हाईकोर्ट का निर्णय इस बात का प्रतीक है कि किसी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और संवैधानिक अनुपालन सर्वोपरि होता है। आरक्षण व्यवस्था का पुनर्निरीक्षण एक जरूरी कदम है, ताकि सभी वर्गों को न्यायसंगत प्रतिनिधित्व मिल सके।

अब देखना यह होगा कि राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग कितनी तेज़ी और पारदर्शिता से प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हैं, ताकि जनता को जल्द से जल्द लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व मिल सके।

 

Muskan Kanojia

Asst. News Producer (T)

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