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Supreme Court On Dowry Harassment : सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता,”पति के रिश्तेदारों को झूठे दहेज मामलों में फंसाने का चलन बढ़ रहा है”

Supreme Court On Dowry Harassment : (Tehelka Desk) सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए एक महिला द्वारा अपने सास-ससुर पर लगाए गए दहेज उत्पीड़न के आरोप को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अब यह एक आम प्रवृत्ति बनती जा रही है कि पत्नियाँ अपने पति के सभी रिश्तेदारों पर आरोप लगाने लगती हैं, चाहे वे सीधे मामले से जुड़े हों या नहीं। जजों ने कहा कि कानून का गलत इस्तेमाल न केवल निर्दोष लोगों के लिए परेशानी का कारण बनता है, बल्कि असली पीड़ितों को भी न्याय मिलने में देरी होती है।

Supreme Court On Dowry Harassment : कोर्ट का यह फैसला समाज के उस हिस्से की ओर ध्यान खींचता है, जहाँ कभी-कभी गुस्से या बदले की भावना से कानूनी रास्तों का दुरुपयोग किया जाता है। हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह टिप्पणी सभी मामलों पर लागू नहीं होती, बल्कि यह एक ट्रेंड है जिस पर सतर्क नजर रखने की ज़रूरत है, ताकि असली पीड़ितों को न्याय मिल सके और निर्दोष लोगों को बेवजह न घसीटा जाए।

Supreme Court On Dowry Harassment
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Supreme Court On Dowry Harassment : सुप्रीम कोर्ट की चिंता: “हर रिश्तेदार को दोषी ठहराने का चलन ठीक नहीं”

सुप्रीम कोर्ट ने एक दहेज उत्पीड़न के मामले में बड़ा फैसला सुनाया और साथ ही एक अहम चिंता भी जताई। कोर्ट ने कहा कि अब ये आम होता जा रहा है कि जब कोई महिला दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराती है, तो उसके साथ-साथ पति के पूरे परिवार – यहां तक कि दूर के रिश्तेदारों – को भी इसमें घसीट लिया जाता है। इस मामले में एक महिला ने अपने पति के साथ-साथ सास, ससुर और ननद के खिलाफ भी दहेज उत्पीड़न के आरोप लगाए थे।

Supreme Court On Dowry Harassment : लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की गहराई से जांच की, तो उन्हें लगा कि ससुराल वालों के खिलाफ लगाए गए आरोप बहुत सामान्य और बिना ठोस आधार के हैं। न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्ला और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में हर किसी को दोषी ठहराना सही नहीं है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि कानून का इस्तेमाल सोच-समझकर और न्याय की भावना के साथ होना चाहिए, ताकि न तो असली पीड़िता को न्याय से वंचित किया जाए और न ही किसी निर्दोष को बेवजह सज़ा मिले।

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Supreme Court On Dowry Harassment : सुप्रीम कोर्ट ने कहा: “शारीरिक उत्पीड़न का कोई आरोप नहीं, सिर्फ ताने और प्रभाव दिखाने की बातें थीं”

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक दहेज उत्पीड़न के मामले में फैसला सुनाते हुए एक महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान दिलाया। कोर्ट ने कहा कि इस केस में महिला ने ससुराल वालों पर किसी तरह की शारीरिक यातना का आरोप नहीं लगाया है। जो बातें कही गईं, वो सिर्फ तानों, राजनीतिक प्रभाव की डींगें मारने और खुद को ऊंचे पद पर बताने तक ही सीमित थीं।

Supreme Court On Dowry Harassment : कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसे मामलों में सिर्फ ताने या दिखावा, दहेज उत्पीड़न की गंभीर धाराओं में केस दर्ज करने के लिए पर्याप्त नहीं होते – खासकर जब बात पति के रिश्तेदारों की हो, जो सीधे उस उत्पीड़न में शामिल नहीं दिखते। न्यायालय ने चिंता जताते हुए कहा कि आजकल यह एक चलन बनता जा रहा है कि दहेज मामलों में पति के परिवार के सभी सदस्यों को, चाहे उनकी भूमिका हो या न हो, आरोपी बना दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अनुचित ठहराते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 का दुरुपयोग बताया और इस प्रवृत्ति की आलोचना की।

Supreme Court On Dowry Harassment : पांच महीने में टूटा रिश्ता, बढ़ते विवादों के बीच कोर्ट तक पहुंचा मामला

एक दंपती की शादी 2014 में आंध्र प्रदेश के गुंटूर में हुई थी। शुरुआत में सब सामान्य था, लेकिन महज पांच महीने के भीतर ही महिला अपने पति को छोड़कर मायके लौट गई। कुछ समय बाद वह वापस ससुराल गई, लेकिन वहां भी रिश्ता नहीं संभल सका और वह फिर से अपने माता-पिता के पास चली गई।पति ने समझाने की कोशिश की और कानूनी रास्ता अपनाते हुए 2015 में ‘वैवाहिक अधिकारों की बहाली’ के लिए याचिका दायर की – ताकि वे फिर से साथ रह सकें। लेकिन इस दौरान रिश्ते में तनाव बना रहा।

Supreme Court On Dowry Harassment : 2016 में महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, हालांकि दोनों के बीच एक समझौता भी हुआ और पति ने मामला वापस ले लिया।लेकिन हालात तब और उलझ गए जब महिला बिना किसी सूचना के अमेरिका चली गई। इसके बाद रिश्ते की दरार और गहरी हो गई। पति ने तलाक की अर्जी दाखिल की, और जवाब में महिला ने फिर से छह लोगों के खिलाफ – जिनमें पति समेत उसके रिश्तेदार भी शामिल थे ।अब सुप्रीम कोर्ट इस पूरे मामले में तथ्यों के आधार पर फैसला ले रही है, ताकि न किसी के साथ अन्याय हो और न ही कानून का दुरुपयोग हो।

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