Headings
- 1 Parshuram Jayanti 2025 : भगवान परशुराम: तप, आस्था और शक्ति का प्रतीक
- 2 Parshuram Jayanti 2025 : जब परशुराम ने श्रीराम को सौंपा अपना धनुष
- 3 Parshuram Jayanti 2025 : जब भगवान परशुराम ने श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र की दीक्षा दी
- 4 Parshuram Jayanti 2025 : हर युग में धर्म के रक्षक बनकर आए भगवान परशुराम
- 5 Parshuram Jayanti 2025 : जब भगवान परशुराम के फरसे ने रचा इतिहास, और समुद्र पीछे हट गया
Parshuram Jayanti 2025 : (Tehelka Desk) हर साल की तरह इस साल भी परशुराम जयंती बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाई जाएगी। इस बार परशुराम जयंती 29 अप्रैल 2025 को पड़ रही है। भगवान परशुराम को भगवान विष्णु के उग्र अवतार के रूप में पूजा जाता है। वे धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए अवतरित हुए थे। भगवान परशुराम से जुड़ी कई रहस्यमयी बातें हैं, जिनमें सबसे खास है उनका चिरंजीवी होना। यानी वे अमर हैं और आज भी पृथ्वी पर कहीं न कहीं विद्यमान हैं। पुराणों के अनुसार, जब कलियुग के अंत में भगवान विष्णु का अंतिम अवतार — भगवान कल्कि — प्रकट होंगे, तब परशुराम ही
Parshuram Jayanti 2025 : उन्हें धर्म की रक्षा के लिए दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्रदान करेंगे और उन्हें अधर्म के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रशिक्षित करेंगे। भगवान परशुराम न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि वे अद्वितीय विद्वता के धनी भी थे। उनका जीवन हमें सिखाता है कि धर्म के मार्ग पर चलते हुए साहस, ज्ञान और करुणा का संतुलन कितना आवश्यक है। इस परशुराम जयंती पर, आइए हम भी अपने भीतर के अन्याय और अधर्म के खिलाफ खड़े होने का संकल्प लें और भगवान परशुराम के आदर्शों को अपने जीवन में उतारें।
आइए, जानते हैं भगवान परशुराम से जुड़े 5 रहस्य
Parshuram Jayanti 2025 : भगवान परशुराम: तप, आस्था और शक्ति का प्रतीक
Parshuram Jayanti 2025 : पुराणों की कथाओं में भगवान परशुराम की कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि एक महान तपस्वी की साधना और शक्ति प्राप्ति की गाथा भी है। जन्म से उनका नाम ‘राम’ था। लेकिन उनका जीवन सिर्फ एक नाम तक सीमित नहीं था – यह संकल्प, तपस्या और अद्भुत बलिदान की कहानी बन गया। कहा जाता है कि राम ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की।
वर्षों तक कठिन साधना करते हुए उन्होंने खुद को पूरी तरह शिव को समर्पित कर दिया। अंततः शिव प्रसन्न हुए और उन्हें एक दिव्य फरसा प्रदान किया – ऐसा शस्त्र जो अजेय था, और धर्म की रक्षा के लिए बना था। यही वह क्षण था जब ‘राम’ केवल एक नाम नहीं रहा। यह शक्ति, समर्पण और न्याय का प्रतीक बन गया। तभी से वे ‘परशुराम’ कहलाए – वह राम जिनके हाथ में फरसा है।
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Parshuram Jayanti 2025 : जब परशुराम ने श्रीराम को सौंपा अपना धनुष
Parshuram Jayanti 2025 : राजा जनक की सभा में जब श्रीराम ने भगवान शिव का धनुष तोड़ा, तो यह समाचार सुनकर परशुराम अत्यंत क्रोधित होकर वहां पहुंचे। सभा में उनका लक्ष्मण से तीखा संवाद भी हुआ। लेकिन जब उन्हें ज्ञात हुआ कि श्रीराम कोई साधारण मानव नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं — तब उनका क्रोध शांत हो गया। परशुराम ने श्रद्धा और सम्मान से अपना धनुष श्रीराम को भेंट किया। इस दृश्य को देखकर सभा में उपस्थित सभी लोग विस्मित रह गए — यह एक दिव्य क्षण था, जहां तप, शक्ति और भक्ति एक साथ नज़र आए।
Parshuram Jayanti 2025 : जब भगवान परशुराम ने श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र की दीक्षा दी
Parshuram Jayanti 2025 : द्वापर युग की एक अद्भुत कथा में वह क्षण भी आता है जब भगवान परशुराम ने श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र चलाने की दिव्य दीक्षा दी थी। उस समय परशुराम पद्मावत राज्य में, शांत वेण्या नदी के किनारे अपने आश्रम में निवास करते थे। जब मगध नरेश जरासंध ने मथुरा पर बार-बार आक्रमण किए, तब बलराम और श्रीकृष्ण दक्षिण की ओर सहायता की खोज में निकले। कई नदियाँ, पर्वत और घने वन पार कर वे परशुरामजी के आश्रम पहुँचे।
आश्रम में परशुराम और उनके परम मित्र व गुरु सांदीपनि मुनि ने दोनों का स्नेह से स्वागत किया।परशुराम ने उन्हें फलाहार कराया, विश्राम की व्यवस्था की और फिर एक विशेष अवसर पर श्रीकृष्ण को वह दीक्षा दी, जिसके बाद उन्होंने सुदर्शन चक्र धारण किया।
Parshuram Jayanti 2025 : हर युग में धर्म के रक्षक बनकर आए भगवान परशुराम
Parshuram Jayanti 2025 : भगवान परशुराम केवल एक युग की नहीं, बल्कि सभी युगों की चेतना हैं। उनका जीवन शक्ति, तप और धर्म की रक्षा की मिसाल है। हर युग में उन्होंने अलग-अलग रूपों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं। सतयुग में, जब गणेश जी ने परशुराम का मार्ग रोका, तब उन्होंने क्रोध में आकर उनका एक दांत तोड़ दिया—यह घटना आज भी उनके “एकदंत” स्वरूप की कहानी कहती है। त्रेतायुग में परशुराम ने श्रीराम का सम्मानपूर्वक स्वागत किया और उन्हें अपना धनुष भेंट किया।
द्वापर युग में वे श्रीकृष्ण के मार्गदर्शक बने, उन्हें सुदर्शन चक्र चलाने की दीक्षा दी, और अधर्म के मार्ग पर बढ़े कर्ण को श्राप देकर रोका। यही नहीं, उन्होंने भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महायोद्धाओं को शस्त्रविद्या सिखाई—जिसने आगे महाभारत जैसे युद्धों की दिशा तय की।
Parshuram Jayanti 2025 : जब भगवान परशुराम के फरसे ने रचा इतिहास, और समुद्र पीछे हट गया
Parshuram Jayanti 2025 : भगवान परशुराम की कथा केवल वीरता की नहीं, बल्कि त्याग, तपस्या और सृजन की भी है। एक समय की बात है जब उन्होंने यज्ञ के लिए एक भव्य सोने की वेदी बनवाई और उस पर कई महान यज्ञ किए। बाद में, महर्षि कश्यप ने उनसे वह वेदी ले ली और आग्रह किया कि अब वे पृथ्वी छोड़ दें। परशुराम ने यह बात मान ली, लेकिन उनके पास स्वयं के लिए कोई स्थान नहीं बचा था। तब उन्होंने समुद्र के देवता वरुण की तपस्या की।
वरुणदेव ने प्रसन्न होकर उन्हें एक उपाय बताया—“अपना फरसा समुद्र में फेंको, जहां तक वह गिरेगा, समुद्र पीछे हट जाएगा और वह भूमि तुम्हारी होगी।” परशुराम ने वैसा ही किया। जहां तक उनका फरसा गिरा, वहां तक समुद्र पीछे हट गया और उस भूमि पर बना आज का केरल राज्य। उस पवित्र भूमि पर उन्होंने भगवान विष्णु का एक भव्य मंदिर बनवाया, जिसे आज तिरूक्ककर अप्पण के नाम से जाना जाता है।