Headings
- 1 Navratri Day 7 : माँ कालरात्रि का स्वरूप
- 2 Navratri Day 7 : माँ कालरात्रि की पौराणिक कथा
- 3 Navratri Day 7 : माँ कालरात्रि की पूजा विधि
- 4 Navratri Day 7 : माँ कालरात्रि की उपासना से प्राप्त होने वाले लाभ
- 5 Navratri Day 7 : माँ कालरात्रि और ज्योतिषीय महत्त्व
- 6 Navratri Day 7 : देशभर में माँ कालरात्रि की आराधना
- 7 Navratri Day 7 : आध्यात्मिक दृष्टिकोण से माँ कालरात्रि
Navratri Day 7 : Tehelka Desk : नवरात्रि के सातवें दिन माँ दुर्गा के सातवें स्वरूप माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है। माँ का यह रूप अत्यंत उग्र, भयानक और रौद्र है, लेकिन भक्तों के लिए यह रूप उतना ही कल्याणकारी और दयालु भी है। माँ कालरात्रि सभी बुराइयों, अंधकार, नकारात्मकता, भूत-प्रेत, तांत्रिक शक्तियों और राक्षसी प्रवृत्तियों का नाश करती हैं।
जो व्यक्ति भय, संकट, रोग, शत्रु या किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से घिरा हो, उसके लिए माँ कालरात्रि की पूजा अत्यंत प्रभावशाली होती है।
माँ कालरात्रि का रूप अत्यंत भयानक और शक्तिशाली है:
•उनका रंग घोर काला है, जो अज्ञान और अंधकार के विनाश का प्रतीक है।
•वे चार भुजाओं वाली हैं।
•एक हाथ में खड्ग (कटार) और दूसरे में वज्र (गदा) है।
•अन्य दो हाथों में वे अभय और वरमुद्रा में रहती हैं, जिससे वे अपने भक्तों को निर्भय और सुखी बनाती हैं।
•उनकी केशराशि बिखरी हुई होती है और गले में नरमुंडों की माला होती है।
•उनकी तीन आँखें हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्ति का संकेत देती हैं।
•उनका वाहन गधा (शुभ्र) है, जो उनके विनम्र लेकिन प्रचंड स्वरूप का प्रतीक है।
माँ का यह रूप भले ही देखने में उग्र हो, लेकिन यह भक्तों के लिए शुभ, कल्याणकारी और रक्षक है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार दो राक्षस — शुम्भ और निशुम्भ, पृथ्वी और स्वर्ग में आतंक मचाने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर माँ दुर्गा ने कालरात्रि रूप धारण कर उनके सेनापति रक्तबीज का वध किया।
रक्तबीज को वरदान था कि जब भी उसके रक्त की बूंदें धरती पर गिरतीं, उससे एक और रक्तबीज उत्पन्न हो जाता। उसे मार पाना असंभव हो गया था। तब माँ कालरात्रि ने रौद्र रूप धारण किया और जैसे ही रक्तबीज को घायल किया, उन्होंने उसका सारा रक्त पी लिया ताकि रक्त से और राक्षस न बनें। इस प्रकार माँ ने राक्षसी शक्ति का नाश किया और ब्रह्मांड की रक्षा की।
माँ कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन श्रद्धा और निर्भयता के साथ करनी चाहिए। उनका पूजन साधक को अत्यधिक ऊर्जा और आत्मबल प्रदान करता है।
पूजा विधि इस प्रकार है:
1. स्नान कर नीले या लाल रंग के वस्त्र धारण करें, जो शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक हैं।
2. पूजा स्थल पर माँ कालरात्रि की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
3. उन्हें लाल पुष्प, गुड़, जौ, रोली, अक्षत, चंदन आदि अर्पित करें।
4. माँ को गुड़, नारियल, काले तिल, और शहद का भोग अर्पित करें।
5. दीप और धूप जलाकर उनकी आरती करें।
6. “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
7. दुर्गा सप्तशती या अर्गला स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ होता है।
1. भय और शत्रुओं से मुक्ति – माँ की उपासना से जीवन में साहस आता है और सभी प्रकार के शत्रुओं व बाधाओं का अंत होता है।
2. नकारात्मक शक्तियों का विनाश – बुरी नजर, टोना-टोटका, काले जादू जैसे प्रभावों से मुक्ति मिलती है।
3. रोग नाशिनी – गंभीर रोगों, मानसिक तनाव और चिंता से राहत मिलती है।
4. आध्यात्मिक जागरण – साधक की ऊर्जा केंद्र (सहस्रार चक्र) सक्रिय होता है और उसे ब्रह्म ज्ञान की ओर प्रेरणा मिलती है।
5. संकटों से रक्षा – माँ की कृपा से जीवन के संकट सहज रूप से दूर हो जाते हैं।
माँ कालरात्रि की पूजा शनि ग्रह की शांति के लिए अत्यंत प्रभावी मानी जाती है।
•यदि कुंडली में शनि अशुभ फल दे रहा हो, तो इस दिन माँ कालरात्रि की विशेष पूजा करने से राहत मिलती है।
•यह दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी होता है जो साढ़े साती या ढैय्या से पीड़ित हैं।
•काशी, उज्जैन, हरिद्वार, नासिक, वाराणसी जैसे तीर्थ स्थानों में माँ कालरात्रि की पूजा विशेष विधि से की जाती है।
•कई स्थानों पर रात्रि जागरण, भजन संध्या और महाकाली चालीसा का पाठ भी किया जाता है।
•भक्तगण रात्रि भर जागकर देवी की स्तुति करते हैं और शक्ति की अनुभूति प्राप्त करते हैं।
माँ कालरात्रि को अज्ञान और अंधकार का विनाश करने वाली देवी माना गया है।
•वे साधक के सहस्रार चक्र को जाग्रत करती हैं, जिससे साधक को आत्मज्ञान प्राप्त होता है।
•उनका स्वरूप हमें सिखाता है कि जीवन में कितने भी भयावह संकट क्यों न आएं, अगर हम सत्य और विश्वास के मार्ग पर चलें तो माँ की कृपा से हर संकट पार हो सकता है।