Headings
- 1 Navratri Day 6 : माँ कात्यायनी का स्वरूप
- 2 Navratri Day 6 : माँ कात्यायनी की पौराणिक कथा
- 3 Navratri Day 6 : माँ कात्यायनी की पूजा विधि
- 4 Navratri Day 6 : माँ कात्यायनी की पूजा से प्राप्त होने वाले लाभ
- 5 Navratri Day 6 : विवाह हेतु माँ कात्यायनी व्रत की महिमा
- 6 Navratri Day 6 : देशभर में माँ कात्यायनी की पूजा और आयोजन
- 7 Navratri Day 6 : आध्यात्मिक दृष्टि से माँ कात्यायनी
Navratri Day 6 : Tehelka Desk : नवरात्रि के छठे दिन माँ दुर्गा के छठे स्वरूप माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है। माँ कात्यायनी को शक्ति, वीरता और विजय की देवी माना जाता है। इनकी उपासना से शत्रु बाधा, भय और रोगों का नाश होता है तथा विवाह में आ रही अड़चनें भी दूर होती हैं। माँ कात्यायनी को रक्त वर्ण, चार भुजाओं वाली और सिंह पर सवार देवी के रूप में पूजनीय माना गया है।
माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत दिव्य और पराक्रमी है।
•वे चार भुजाओं वाली देवी हैं।
•उनके एक हाथ में कमल, दूसरे में तलवार, तीसरे हाथ में वर मुद्रा और चौथे में अभय मुद्रा होती है।
•उनका वाहन सिंह है, जो साहस और शक्ति का प्रतीक है।
•उनका शरीर सोने जैसे तेजस्वी और स्वरूप रौद्र रूपधारी है, जो दुष्टों का नाश करने वाली शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
एक समय की बात है, महर्षि कात्यायन ने देवी भगवती की कठोर तपस्या की थी। उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि देवी भगवती उनके घर पुत्री रूप में जन्म लें। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माँ दुर्गा ने आश्वासन दिया कि वे उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेंगी।
इसी दौरान दैत्य महिषासुर का आतंक बढ़ गया था। देवताओं के अनुरोध पर, भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश की तेज़ ऊर्जा से एक देवी उत्पन्न हुईं जिन्होंने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया और उन्हें कात्यायनी कहा गया।
बड़े होने पर माँ कात्यायनी ने महिषासुर से युद्ध किया और अंततः उसका वध कर संसार को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। इस कारण वे विजया शक्ति के रूप में पूजी जाती हैं।
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माँ कात्यायनी की पूजा करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं। विशेष रूप से जिन कन्याओं के विवाह में विलंब हो रहा हो, उन्हें माँ की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
पूजा विधि इस प्रकार है:
1.स्नान कर पीले वस्त्र पहनें – यह रंग माँ को अति प्रिय है।
2.माँ की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें – उन्हें गंगाजल से स्नान कराएं।
3.पुष्प, अक्षत, रोली, चंदन और धूप-दीप से पूजन करें।
4.माँ को शहद, गुड़, नारियल, या हलवा का भोग अर्पित करें।
5.“ॐ देवी कात्यायन्यै नमः” मंत्र का जाप करें।
6.दुर्गा सप्तशती या कवच का पाठ करें और अंत में आरती करें।
7.विवाह की इच्छा रखने वाले भक्त ‘कात्यायनी व्रत’ रख सकते हैं, जिसमें विशेष नियमों का पालन कर माँ की कृपा प्राप्त की जाती है।
1.विवाह में आ रही अड़चनों से मुक्ति – अविवाहित कन्याओं के लिए माँ कात्यायनी की उपासना अत्यंत फलदायी मानी जाती है।
2.शत्रु नाश और विजय प्राप्ति – माँ की कृपा से शत्रु पर विजय और साहस की प्राप्ति होती है।
3.रोग, भय और नकारात्मक शक्तियों का नाश – माँ की आराधना से जीवन की कठिनाइयाँ दूर होती हैं।
4.धैर्य और शक्ति की प्राप्ति – माँ साधक को मानसिक और शारीरिक बल प्रदान करती हैं।
5.आध्यात्मिक जागरण – माँ कात्यायनी की पूजा से साधक का मन योग और भक्ति में स्थिर होता है।
पौराणिक ग्रंथों और कथाओं के अनुसार, माँ कात्यायनी का व्रत करने से विवाह में आ रही सभी बाधाएं दूर होती हैं। यह व्रत विशेष रूप से उन कन्याओं द्वारा किया जाता है जो अपने मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति की कामना रखती हैं।
भागवत पुराण के अनुसार, ब्रज की गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए मार्गशीर्ष मास में माँ कात्यायनी का व्रत किया था। उन्होंने पूरे मास नियमपूर्वक स्नान कर यमुना तट पर रजकणों से माँ की मूर्ति बनाकर पूजा की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उन्हें वरदान दिया और उनका मनोरथ पूर्ण किया। आज भी कई कन्याएं यह व्रत नवरात्रि में रखती हैं या फिर मार्गशीर्ष मास में पूरे एक महीने तक माँ कात्यायनी की पूजा करती हैं।
नवरात्रि के छठे दिन देशभर में माँ कात्यायनी की पूजा हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ होती है।
• उत्तर भारत के मंदिरों में विशेष हवन, दुर्गा सप्तशती पाठ, भजन संध्या और कन्या पूजन आयोजित होते हैं।
• बंगाल और असम में दुर्गा पूजा के अंतर्गत इस दिन माँ कात्यायनी की विशेष आराधना होती है।
• कई घरों में इस दिन कन्याओं को भोजन कराकर उन्हें देवी स्वरूप मानकर पूजने की परंपरा है।
• माँ कात्यायनी की उपासना से साधक के आज्ञा चक्र (मस्तिष्क के मध्य स्थित चक्र) का जागरण होता है।
• यह चक्र आत्मबोध, बुद्धि, निर्णय शक्ति और उच्च चेतना का केंद्र है।
• माँ की कृपा से साधक में दिव्य दृष्टि, विवेक और आत्मबल जाग्रत होता है।
साधना के उच्च पथ पर अग्रसर व्यक्ति के लिए यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इससे साधक को आत्मविजय और ब्रह्मज्ञान की ओर प्रेरणा मिलती है।
इस दिन माँ की पूजा पूर्ण श्रद्धा और आस्था से करनी चाहिए ताकि जीवन में आने वाली सभी बाधाएं समाप्त हों और सुख-समृद्धि की प्राप्ति हो सके।