Kanwar Yatra 2025: कांग्रेस-सपा बनाम BJP, कांवड़ यात्रा पर बयानबाज़ी से गरमाई सियासत
(Tehelka Desk) Kanwar Yatra 2025:
सावन के पवित्र महीने में शुरू होने वाली Kanwar Yatra एक बार फिर राजनीति का मुद्दा बन गई है। एक तरफ शिवभक्त भोलेनाथ के जयकारों के साथ कांवड़ लेकर गंगा जल लाने की तैयारी में जुटे हैं, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन के बयानों ने बीजेपी को पलटवार करने का मौका दे दिया है। जानिए कांवड़ यात्रा पर शुरू हुई सियासी जंग की पूरी कहानी।
क्या बोले दिग्विजय सिंह और एसटी हसन?
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने हाल ही में अपने एक बयान में कांवड़ यात्रा को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि, “धार्मिक यात्राओं के नाम पर सरकारें वोट बैंक की राजनीति कर रही हैं। कांवड़ यात्रा में सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग होता है। जब भी चुनाव नजदीक आते हैं, ये यात्राएं और ज्यादा भव्य बना दी जाती हैं।”
वहीं, समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन ने एक बयान में कहा कि, “कांवड़ यात्रा में लाखों लोग जुटते हैं, लेकिन प्रशासन केवल हिंदू यात्राओं को ही खास तवज्जो देता है। दूसरी धार्मिक जमातों को क्यों इतनी सहूलियत नहीं मिलती?”
इन बयानों ने बीजेपी को कांग्रेस और सपा पर हमला करने का मौका दे दिया है।
BJP का करारा जवाब , आस्था पर राजनीति बर्दाश्त नहीं
दिग्विजय सिंह और एसटी हसन के बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि, “कांवड़ यात्रा कोई राजनीति नहीं बल्कि आस्था का विषय है। करोड़ों शिवभक्त अपने शिव को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ लाते हैं। कांग्रेस और सपा के नेताओं को हिंदुओं की आस्था पर सवाल उठाने की आदत हो गई है। लेकिन ये बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी बयान दिया कि, “जो लोग कांवड़ यात्रा को राजनीति कहते हैं, वो पहले अपने गिरेबान में झांक लें। हमारी सरकार सभी धार्मिक आयोजनों को सुरक्षा और सुविधा देने के लिए प्रतिबद्ध है, चाहे वो कोई भी धर्म हो।”
क्या है कांवड़ यात्रा?
कांवड़ यात्रा हर साल सावन के महीने में होती है। इसमें शिवभक्त गंगा नदी से जल भरकर पैदल चलते हुए अपने गांव-शहर के शिव मंदिरों में जलाभिषेक करते हैं। यह यात्रा लाखों कांवड़ियों के लिए आस्था और भक्ति का सबसे बड़ा पर्व है।
इस दौरान यूपी, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और बिहार समेत कई राज्यों में प्रशासन विशेष व्यवस्था करता है ताकि यात्रियों को कोई असुविधा न हो। हाईवे पर विशेष लेन, मेडिकल कैंप और पुलिस बल तैनात किए जाते हैं।
सुरक्षा और राजनीति , हमेशा से रहा है विवाद
कांवड़ यात्रा का इतिहास भले ही पुराना हो, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह सुरक्षा और राजनीतिक बयानबाजी का मुद्दा बनती रही है। पहले भी कई बार विपक्षी पार्टियां इस पर सवाल उठाती रही हैं कि आखिर सरकार क्यों इतनी बड़ी व्यवस्था सिर्फ एक समुदाय के लिए करती है।
बीजेपी हमेशा इस तर्क को खारिज करते हुए कहती है कि यह आस्था से जुड़ा पर्व है, और हर धर्म के आयोजन को सरकार समर्थन देती है। रमजान, ईद, बकरीद, मुहर्रम जैसे आयोजनों के दौरान भी प्रशासन सुरक्षा और सहूलियत देता है। ऐसे में सिर्फ कांवड़ यात्रा पर सवाल उठाना सही नहीं।
जमीनी तैयारी क्या है?
कांवड़ यात्रा 2025 को लेकर इस बार कई राज्यों ने विशेष तैयारी की है। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने पुलिस और प्रशासन को साफ निर्देश दिए हैं कि कांवड़ियों को किसी भी हाल में परेशानी न हो। कांवड़ पथ पर CCTV कैमरे, ड्रोन से निगरानी, मेडिकल कैंप, फ्री लंगर जैसी व्यवस्थाएं की जा रही हैं।
दिल्ली, हरियाणा और उत्तराखंड में भी ट्रैफिक प्लानिंग से लेकर सुरक्षा व्यवस्था के लिए हज़ारों पुलिसकर्मी तैनात किए जाएंगे।
आस्था Vs राजनीति , कौन सही, कौन गलत?
विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत जैसे धार्मिक देश में धार्मिक आयोजनों पर राजनीति होना कोई नई बात नहीं है। खासकर कांवड़ यात्रा जैसी विशाल यात्रा में लाखों की भीड़ जुटती है, ऐसे में सुरक्षा जरूरी हो जाती है।
दूसरी तरफ, विपक्ष का तर्क है कि इतनी बड़ी व्यवस्था के नाम पर सत्ताधारी पार्टी इसे ‘वोट बैंक’ में बदल देती है। बीजेपी इस आरोप को सिरे से खारिज करती है।
सोशल मीडिया पर क्या माहौल?
कांवड़ यात्रा पर सियासत को लेकर सोशल मीडिया दो खेमों में बंटा दिख रहा है। बीजेपी समर्थक कह रहे हैं कि विपक्षी दल सिर्फ हिंदू आस्था पर सवाल उठाते हैं। वहीं कांग्रेस और सपा समर्थक कह रहे हैं कि सरकार को हर धर्म के लिए बराबर सुविधा देनी चाहिए।
ट्विटर पर #KanwarYatra2025, #DigiVijaySingh और #STHasan ट्रेंड कर रहा है। लोग एक-दूसरे से बहस कर रहे हैं कि क्या सरकार सही कर रही है या विपक्ष के सवाल जायज हैं।
सावन में शिवभक्ति का माहौल तो हर साल ही होता है, लेकिन राजनीति भी साथ चलती है। इस बार दिग्विजय सिंह और एसटी हसन के बयान ने कांवड़ यात्रा को सियासी अखाड़ा बना दिया है। बीजेपी साफ कह चुकी है कि आस्था पर राजनीति बर्दाश्त नहीं होगी। आने वाले दिनों में यह विवाद कितना बढ़ता है और क्या इसका असर लोकसभा चुनाव 2026 पर पड़ेगा , यह देखना दिलचस्प होगा।