Headings
- 1 Uttarakhand Vidhansabha Session 2025 : विपक्ष के तीखे हमलों के बीच कौन बनेगा सरकार की ढाल
- 1.0.1 Jagannath Rath Yatra 2025: पुरी के राजा का चेरा पंहारा, सेवा की परंपरा
- 1.0.2 गुंडिचा मंदिर यात्रा और बहुड़ा यात्रा
- 1.0.3 Jagannath Rath Yatra 2025: विश्व में प्रसिद्धि और ‘Juggernaut‘ शब्द की उत्पत्ति
- 1.0.4 रथ यात्रा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
- 1.0.5 Jagannath Rath Yatra 2025: आस्था की रथ यात्रा एक सामाजिक और आध्यात्मिक संगम
(Tehelka Desk)Jagannath Rath Yatra 2025:
पुरी (ओडिशा) की धरती पर हर साल होने वाली Jagannath Rath Yatra केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और सामाजिक समरसता का विराट उत्सव है। 2025 में यह यात्रा आज यानी 27 जून से आरंभ हो रही है। लाखों श्रद्धालु इस महायात्रा का हिस्सा बनने पुरी पहुंचते हैं, जहां भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण करते हैं।
कब और कैसे होती है रथ यात्रा
रथ यात्रा हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को आरंभ होती है, जो 2025 में 27 जून को पड़ रही है। यह यात्रा कुल 9 दिनों की होती है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को पुरी स्थित उनके मुख्य मंदिर से निकालकर करीब 3 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर तक रथों में ले जाया जाता है। यात्रा का समापन ‘बहुड़ा यात्रा’ से होता है, जो इस बार 5 जुलाई को है।
Jagannath Rath Yatra 2025: रथ खींचने वाली रस्सियां, सिर्फ साधन नहीं, श्रद्धा का प्रतीक
रथ यात्रा की एक खास बात है इन रथों को खींचने वाली विशालकाय रस्सियां। ये रस्सियां केवल एक माध्यम नहीं, बल्कि श्रद्धालुओं की भक्ति और आस्था की डोर हैं।
कैसे बनते हैं रथ
रथों का निर्माण हर साल नए सिरे से होता है, और इसकी शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन होती है। रथ निर्माण में केवल पारंपरिक औजार और विधियां ही प्रयोग होती हैं। लकड़ी विशेष रूप से चयनित पेड़ों से ली जाती है, जो पुरी के आसपास के जंगलों से लाई जाती है।
- प्रत्येक रथ का निर्माण लगभग 60-70 दिन में पूरा होता है।
- करीब 100 से अधिक कारीगर दिन-रात इस कार्य में लगे रहते हैं।
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‘दाहुका बोली’ और लोक सांस्कृतिक रंग
- रथ यात्रा के प्रारंभ में एक रोचक परंपरा है जिसे ‘दाहुका बोली’ कहा जाता है। इसमें दाहुका पारंपरिक, कभी-कभी दोहरे अर्थ वाले गीत गाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब तक ये बोली नहीं होती, रथ आगे नहीं बढ़ता।
- यह परंपरा लोक-संस्कृति और जनमानस की भावना को उजागर करती है, और सामाजिक समरसता का प्रतीक है।
Jagannath Rath Yatra 2025: पुरी के राजा का चेरा पंहारा, सेवा की परंपरा
रथ यात्रा का एक महत्वपूर्ण अंग है पुरी के राजा द्वारा रथों की सफाई। यह रस्म ‘चेरा पंहारा’ कहलाती है। राजा स्वर्ण झाड़ू से तीनों रथों की सफाई करते हैं, जिससे यह संदेश दिया जाता है कि भगवान के सामने सब बराबर हैं even राजा भी।
गुंडिचा मंदिर यात्रा और बहुड़ा यात्रा
- भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन गुंडिचा मंदिर में विश्राम करते हैं। इस समय को ‘रत्नवेदि पर विश्राम’ कहा जाता है।
- इसके बाद होती है बहुड़ा यात्रा, जिसमें भगवान पुनः अपने मूल मंदिर लौटते हैं। इस वापसी यात्रा में भी उतनी ही भीड़ और उत्साह देखने को मिलता है।
Jagannath Rath Yatra 2025: विश्व में प्रसिद्धि और ‘Juggernaut‘ शब्द की उत्पत्ति
- क्या आप जानते हैं कि अंग्रेज़ी का शब्द Juggernaut भी इसी रथ यात्रा से आया है? इसका मतलब है – “एक ऐसी अजेय शक्ति जो सब कुछ रौंदते हुए आगे बढ़ती है”। यह इस रथ की विशालता और प्रभाव को दर्शाता है।
रथ यात्रा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
- भगवान खुद आम जनता के बीच आते हैं, यह किसी भी मंदिर परंपरा में विरल है।
- इस यात्रा में गैर-हिंदू लोग भी शामिल हो सकते हैं, जो जगन्नाथ मंदिर में नहीं जा सकते।
- भगवान के रथ को छूना, खींचना या उसके नीचे से गुजरना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।
- रथ यात्रा का सीधा प्रसारण देश-विदेश में किया जाता है।
Jagannath Rath Yatra 2025: आस्था की रथ यात्रा एक सामाजिक और आध्यात्मिक संगम
जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, यह समानता, सेवा और श्रद्धा का महोत्सव है। तीनों रस्सियों के नाम, संखचूड़ नागिनी, बासुकी नागिनी, स्वर्णचूड़ नागिनी इनकी आध्यात्मिक महत्ता को दर्शाते हैं। यह यात्रा भक्तों को न केवल मोक्ष का मार्ग दिखाती है, बल्कि उन्हें यह भी सिखाती है कि भगवान हर किसी के हैं, चाहे वह राजा हो या रथ खींचने वाला आम भक्त।