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Iran vs Israel : नेतन्याहू की चाल से कैसे बदल गई अमेरिकी रणनीति?

(Tehelka Desk)Iran vs Israel : 

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर सालों से अमेरिका और इज़राइल के बीच गहन रणनीतिक चर्चाएं होती रही हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति donald trump ने जहां शुरू में सिर्फ ईरान की फोर्डो न्यूक्लियर फैसिलिटी को लक्ष्य बनाने की योजना बनाई थी, वहीं इज़राइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की कूटनीतिक रणनीति ने अमेरिकी नजरिया बदल दिया। नेतन्याहू ने ट्रंप को केवल एक नहीं, बल्कि ईरान की तीनों प्रमुख परमाणु साइटों को निशाना बनाने के लिए राजी किया — फोर्डो, नतांज, और अराक ।

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यह कहानी केवल सैन्य रणनीति की नहीं, बल्कि राजनैतिक दबाव, खुफिया जानकारी, और द्विपक्षीय संबंधों की गहराई को उजागर करती है।

Iran vs Israel :   ट्रंप का प्राथमिक लक्ष्य क्यों?

फोर्डो परमाणु संयंत्र, ईरान की राजधानी तेहरान से लगभग 100 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी के नीचे स्थित है। इसकी गहराई और सुरक्षा संरचना इसे हवाई हमलों से लगभग अभेद्य बनाती है। 2019 के दौरान, जब ईरान धीरे-धीरे जॉइंट कॉम्प्रिहेन्सिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA) यानी ईरान न्यूक्लियर डील से हटने लगा, तब अमेरिका की चिंता बढ़ गई।

ट्रंप प्रशासन को यह सूचना मिली थी कि ईरान इस साइट पर यूरेनियम संवर्धन फिर से शुरू कर चुका है। इसलिए, ट्रंप केवल फोर्डो पर सर्जिकल स्ट्राइक या हवाई हमले की योजना पर विचार कर रहे थे। उन्हें लगता था कि इससे ईरान को बड़ा झटका दिया जा सकता है और युद्ध की संभावना को टाला जा सकेगा।

Iran vs Israel :  नेतन्याहू का दबाव, “एक नहीं, तीनों साइटें खत्म करनी होंगी”

बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे एक अधूरा कदम बताया। उनके मुताबिक, अगर केवल फोर्डो को निशाना बनाया जाता है, तो ईरान अपनी गतिविधियां नतांज और अराक में जारी रखेगा। इज़राइली खुफिया एजेंसी मोसाद की रिपोर्ट्स के मुताबिक, नतांज में संवर्धन की प्रक्रिया पहले से कहीं ज्यादा तेज़ थी और अराक में भारी पानी के रिएक्टर का निर्माण चल रहा था, जिससे प्लूटोनियम आधारित हथियार बनाए जा सकते थे।

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Iran vs Israel :  नेतन्याहू ने ट्रंप को क्या बताया?

  1. नतांज ईरान का सबसे बड़ा संवर्धन केंद्र है, और इसकी पूरी क्षमता अगर सक्रिय हो गई, तो ईरान महीनों में हथियार बनाने लायक यूरेनियम तैयार कर सकता है।
  2. अराक रिएक्टर का उद्देश्य एक शांतिपूर्ण परियोजना बताया गया, लेकिन इसकी तकनीकी प्रकृति से यह संभावित प्लूटोनियम उत्पादन केंद्र बन सकता है।
  3. यदि केवल फोर्डो को खत्म किया गया, तो बाकी दोनों साइटों से ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को फिर से पुनर्जीवित कर सकता है — इससे अमेरिका और इज़राइल दोनों के लिए खतरा बना रहेगा।

Iran vs Israel :  ट्रंप का दृष्टिकोण, संदेह और आक्रामकता के बीच

डोनाल्ड ट्रंप अपने कार्यकाल में अमेरिका फर्स्ट नीति के तहत युद्धों से दूरी बनाने के पक्षधर थे, खासकर मिडिल ईस्ट में। लेकिन वे ईरान के प्रति बेहद सख्त रवैया भी अपनाते थे। जब नेतन्याहू ने उन्हें तीनों साइटों को निशाना बनाने की मांग रखी, तो ट्रंप ने अपने सैन्य सलाहकारों और खुफिया एजेंसियों से विस्तृत रिपोर्ट्स मंगवाईं।

CIA और पेंटागन दोनों ने यह स्वीकार किया कि नेतन्याहू की बातों में दम है, लेकिन यह भी आगाह किया कि एक साथ तीनों साइटों को निशाना बनाना बड़े पैमाने पर संघर्ष को जन्म दे सकता है।

Iran vs Israel :  राजी कैसे हुए ट्रंप?

नेतन्याहू ने ट्रंप से व्यक्तिगत मुलाकातों और बैक-चैनल कम्युनिकेशन के जरिए यह तर्क दिया कि अगर तीनों साइटों पर एक साथ हमला किया गया, तो ईरान को झटका लगेगा और वह बातचीत की मेज पर आने को मजबूर होगा। नेतन्याहू ने यह भी संकेत दिया कि इज़राइल अमेरिका के साथ मिलकर हमले को अंजाम देने को तैयार है — यानी सारा दबाव अकेले अमेरिका पर नहीं पड़ेगा।

इसके अलावा, नेतन्याहू ने ट्रंप के राष्ट्रवादी रवैये को भी अपील किया। उन्होंने कहा कि यह हमला ट्रंप की अंतरराष्ट्रीय साख को और मज़बूत करेगा और उन्हें 2020 के चुनावों में फायदा पहुंचा सकता है।

आखिरकार, ट्रंप ने इस योजना को गंभीरता से विचार में लिया और तीनों साइटों पर एक साथ कार्रवाई की रणनीति तैयार करने के आदेश दिए , हालाँकि यह योजना अंतिम स्तर तक नहीं पहुंची क्योंकि चुनाव नतीजों और प्रशासनिक बदलावों के कारण इसे अंजाम नहीं दिया जा सका।

Iran vs Israel :  हमला क्यों नहीं हुआ?

हालांकि योजना पूरी तरह तैयार थी और अमेरिकी व इज़राइली सैन्य सहयोगी तैयार बैठे थे, लेकिन 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडन की जीत और सत्ता परिवर्तन ने इस योजना को रोक दिया। बाइडन प्रशासन ने फिर से JCPOA को पुनर्जीवित करने की कोशिश शुरू की और सैन्य कार्रवाई के बजाय डिप्लोमैसी को प्राथमिकता दी।

यह घटना केवल एक सैन्य रणनीति का मामला नहीं थी, बल्कि यह दिखाती है कि कूटनीतिक संबंध, खुफिया एजेंसियों की भूमिका और व्यक्तिगत राजनीतिक इच्छाशक्ति कैसे अंतरराष्ट्रीय निर्णयों को प्रभावित करती है। नेतन्याहू ने केवल एक सहयोगी नेता को नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली देश को रणनीतिक रूप से प्रभावित कर नीति परिवर्तन कराने में सफलता हासिल की।

हालांकि यह हमला नहीं हुआ, लेकिन यह पूरी रणनीति आज भी इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक मजबूत विचारधारा, सटीक खुफिया जानकारी और राजनीतिक सूझबूझ मिलकर वैश्विक घटनाओं की दिशा बदल सकते हैं।

 

 

 

 

Muskan Kanojia

Asst. News Producer (T)

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