(Tehelka Desk)Iran Israel :
परमाणु शक्ति या आत्मविनाश की दिशा?
ईरान सालों से अपनी परमाणु महत्वाकांक्षाओं को लेकर वैश्विक राजनीति के केंद्र में बना हुआ है। हालांकि ईरान हमेशा यह दावा करता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, लेकिन उसके कार्यक्रम की गोपनीयता और तेज़ी ने अमेरिका, इजरायल और पश्चिमी देशों को बार-बार चिंतित किया है।
वहीं दूसरी ओर, इजरायल ने बार-बार स्पष्ट किया है कि वह ईरान को कभी भी परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र नहीं बनने देगा। इसी रणनीति के तहत इजरायल ने हाल ही में ईरान के सेंट्रीफ्यूज फैसिलिटी और न्यूक्लियर रिसर्च सेंटरों पर सर्जिकल स्ट्राइक्स और साइबर हमलों को अंजाम दिया है।
अब सवाल ये है कि क्या ईरान की परमाणु दौड़ खुद उसके लिए एक विनाशकारी रास्ता बन रही है?
Iran Israel : ईरान का परमाणु कार्यक्रम, इतिहास और उद्देश्य
ईरान का परमाणु कार्यक्रम 1950 के दशक में अमेरिका के सहयोग से शुरू हुआ था, लेकिन 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से इसमें बड़ा बदलाव आया। अब यह कार्यक्रम पूर्ण रूप से ईरानी नियंत्रण में है, और इसके उद्देश्यों पर हमेशा संदेह बना रहा।
यूरेनियम संवर्धन, सेंट्रीफ्यूज टेक्नोलॉजी, और भूमिगत फैसिलिटीज — ये सभी संकेत देते हैं कि ईरान का उद्देश्य केवल ऊर्जा उत्पादन नहीं, बल्कि परमाणु हथियार निर्माण भी हो सकता है।
Iran Israel : इजरायल की चिंताएं और कड़ी प्रतिक्रियाएं
इजरायल ने ईरान की परमाणु क्षमताओं को अपने अस्तित्व के लिए खतरा बताया है। उसका दावा है कि यदि ईरान को परमाणु हथियार मिल गए, तो पूरा मिडिल ईस्ट अस्थिर हो सकता है।
इसी रणनीति के तहत इजरायल ने:
- नेटैंज न्यूक्लियर फैसिलिटी में रहस्यमयी विस्फोट कराए
- साइबर अटैक के ज़रिए ईरान के परमाणु डेटा को नष्ट किया
- वैज्ञानिकों को निशाना बनाया
- सेंट्रीफ्यूज संयंत्रों को बमबारी और ड्रोन हमलों से तबाह किया
इजरायल की ये कार्रवाइयां सीधे युद्ध की तरह नहीं, लेकिन “शैडो वॉर” यानी छाया युद्ध का हिस्सा हैं।
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Iran Israel : क्या ईरान का परमाणु सपना विनाश की ओर ले जा रहा है?
ईरान का यह परमाणु कार्यक्रम राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक है, लेकिन इसके चलते वह:
- अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना कर रहा है
- आर्थिक संकट की गिरफ्त में है
- कूटनीतिक अलगाव झेल रहा है
- और अब सीधे सैन्य हमलों की चपेट में आ चुका है
यह कहना गलत नहीं होगा कि यह परमाणु दौड़ कहीं ईरान के लिए ही एक आत्मघाती यात्रा न बन जाए।
Iran Israel : वैश्विक प्रतिक्रिया और अमेरिका की भूमिका
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, IAEA और अमेरिका इस पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए हैं।
- 2015 का ईरान परमाणु समझौता एक आशा की किरण था, लेकिन ट्रंप सरकार द्वारा इसे छोड़ देने के बाद हालात बिगड़ गए।
- बाइडेन प्रशासन पुन: वार्ता की कोशिश कर रहा है, लेकिन ईरान अब और कड़े रुख में है।
- इजरायल इस समझौते का विरोध करता रहा है और कह चुका है कि “हम अपनी सुरक्षा के लिए किसी से अनुमति नहीं लेंगे।”
इस स्थिति में अमेरिका का दोहरा दबाव — एक ओर ईरान को कूटनीति में लाना और दूसरी ओर इजरायल को समर्थन देना — बेहद चुनौतीपूर्ण हो चुका है।
Iran Israel : क्या टकराव अनिवार्य है?
ईरान की बढ़ती यूरेनियम संवर्धन क्षमता, और इजरायल की आक्रामक रणनीति — दोनों पक्ष अब टकराव की कगार पर हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि यदि कूटनीति असफल होती है, तो:
- सीमित युद्ध या प्रॉक्सी वार शुरू हो सकता है
- गल्फ देशों में अस्थिरता और तेल आपूर्ति बाधित हो सकती है
- सिविलियन कैजुअल्टी और मानवीय संकट उत्पन्न हो सकता है
Iran Israel : ईरान की जनता और नेतृत्व के बीच खाई
- देश के भीतर भी जनता का एक बड़ा वर्ग इस परमाणु दौड़ से परेशान है। आर्थिक महंगाई, बेरोज़गारी और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों ने आम आदमी की ज़िंदगी को मुश्किल बना दिया है। लेकिन ईरान की कट्टरवादी सरकार इसे राष्ट्रीय गौरव बताकर जनता को भ्रमित करती रही है।
- यदि यह स्थिति बनी रही, तो जनता और शासन के बीच की खाई और बढ़ सकती है।
Iran Israel : संतुलन और समझौते की ज़रूरत
ईरान का परमाणु कार्यक्रम अब सिर्फ टेक्नोलॉजिकल प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि राजनीतिक और सुरक्षा संकट बन चुका है। यदि समय रहते बातचीत, समझौता और पारदर्शिता नहीं अपनाई गई, तो:
- एक संभावित युद्ध का रास्ता खुलेगा
- मिडिल ईस्ट में नई अस्थिरता शुरू होगी
- और परमाणु शक्ति का यह सपना स्वयं ईरान के लिए काल बन सकता है