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(Tehelka Desk)Iran-Israel War :
पश्चिम एशिया में युद्ध का खतरा और भारत की ऊर्जा रणनीति
Iran-Israel के बीच बढ़ते तनाव ने वैश्विक स्तर पर ऊर्जा सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है। पश्चिम एशिया दुनिया के सबसे बड़े कच्चे तेल उत्पादकों में से एक है और यहां किसी भी तरह की सैन्य अस्थिरता का असर वैश्विक तेल आपूर्ति और कीमतों पर पड़ता है। भारत, जो कि अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए बड़ी हद तक आयातित कच्चे तेल पर निर्भर है, इस तनाव से सीधे तौर पर प्रभावित हो सकता है। ऐसे में भारत ने स्थिति को भांपते हुए समय रहते अपनी रणनीति को बदला है और रूस से कच्चे तेल के आयात को बढ़ा दिया है।
Iran-Israel War: पश्चिम एशिया में तनाव का कारण, ईरान-इज़राइल टकराव
पश्चिम एशिया में तनाव का मूल कारण ईरान और इज़राइल के बीच लंबे समय से चला आ रहा वैचारिक और रणनीतिक विरोध है। हालिया समय में यह विरोध सैन्य संघर्ष की ओर बढ़ता नजर आया है। दोनों देशों के बीच हुई मिसाइल और ड्रोन हमलों की घटनाओं ने इस क्षेत्र को युद्ध के मुहाने पर ला खड़ा किया है।
इज़राइल का कहना है कि ईरान समर्थित गुटों द्वारा उस पर हमला किया गया है, वहीं ईरान ने इज़राइल पर अपने परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या और देश की आंतरिक स्थिरता को कमजोर करने के आरोप लगाए हैं। इस स्थिति ने पूरे मध्य पूर्व क्षेत्र को अस्थिर कर दिया है।
Iran-Israel War: भारत की ऊर्जा निर्भरता और खतरा
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का लगभग 85% हिस्सा कच्चे तेल के आयात से पूरा होता है। भारत अपने कच्चे तेल का एक बड़ा हिस्सा पश्चिम एशिया, विशेषकर सऊदी अरब, इराक, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और ईरान जैसे देशों से प्राप्त करता है। ऐसे में अगर इस क्षेत्र में युद्ध की स्थिति बनती है, तो भारत की आपूर्ति शृंखला प्रभावित हो सकती है, जिससे न केवल तेल की कीमतें बढ़ेंगी, बल्कि महंगाई भी चरम पर पहुंच सकती है।
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Iran-Israel War: भारत की रणनीति, रूस से आयात में वृद्धि
हालात को देखते हुए भारत सरकार ने स्थिति को संभालने के लिए एक कूटनीतिक और व्यावसायिक रणनीति अपनाई है। भारत ने रूस से कच्चे तेल के आयात में उल्लेखनीय वृद्धि की है। यूक्रेन युद्ध के बाद से ही रूस पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के चलते, रूस ने भारत को रियायती दरों पर तेल बेचना शुरू किया था। भारत ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए रूस को अपने प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ताओं में शामिल कर लिया।
रूस से आयात के फायदे:
- कम कीमत पर आपूर्ति: पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण रूस वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धी कीमत पर कच्चा तेल दे रहा है, जिससे भारत को आर्थिक रूप से फायदा हो रहा है।
- विविधता लाने में मदद: पारंपरिक पश्चिम एशियाई स्रोतों पर निर्भरता कम करने में यह कदम मददगार साबित हो रहा है।
- लॉन्ग-टर्म रणनीतिक साझेदारी: रूस और भारत के बीच ऊर्जा क्षेत्र में साझेदारी दीर्घकालीन रणनीति का हिस्सा बनती जा रही है।
Iran-Israel War: चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
हालांकि रूस से कच्चे तेल का बढ़ता आयात भारत के लिए राहत भरा कदम है, लेकिन इससे कुछ चुनौतियाँ और आलोचनाएँ भी जुड़ी हैं।
- भू-राजनीतिक दबाव: पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका और यूरोपीय संघ, भारत के इस कदम को संशय की दृष्टि से देख सकते हैं क्योंकि ये देश रूस पर प्रतिबंधों को प्रभावी बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
- भुगतान और बीमा की समस्या: रूस पर लगे वित्तीय प्रतिबंधों के कारण भुगतान व्यवस्था और बीमा कवरेज जैसे मुद्दे जटिल हो जाते हैं।
- परिवहन लागत: रूस से तेल लाने की लॉजिस्टिक्स लागत पश्चिम एशिया की तुलना में अधिक हो सकती है, जो दीर्घकालिक रूप से भारत के लिए आर्थिक दबाव पैदा कर सकती है।
Iran-Israel War: तेल कीमतों पर संभावित असर
ईरान-इज़राइल युद्ध की आशंका ने वैश्विक तेल बाज़ार में उथल-पुथल मचा दी है। तेल की कीमतों में अस्थिरता देखी जा रही है, और यदि स्थिति और बिगड़ती है तो कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर भी जा सकती हैं। भारत में इसका सीधा असर पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों और सामान्य उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।
Iran-Israel War: ऊर्जा सुरक्षा के लिए भारत की अन्य तैयारियां
भारत सिर्फ रूस से आयात बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा के लिए कई और कदम उठा रहा है:
- रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व: भारत ने रणनीतिक भंडार तैयार किया है ताकि किसी आपात स्थिति में कुछ हफ्तों की आवश्यकता पूरी की जा सके।
- ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण: भारत अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया के अन्य देशों से भी ऊर्जा साझेदारियाँ विकसित कर रहा है।
- नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर: भारत सरकार सौर और पवन ऊर्जा जैसे वैकल्पिक स्रोतों पर निवेश बढ़ा रही है, ताकि जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम की जा सके।
Iran-Israel War: सजग भारत, सुदृढ़ रणनीति
ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ते तनाव ने भारत के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है, लेकिन सरकार ने समय रहते रूस से तेल आयात बढ़ाकर इस संकट को नियंत्रित करने की कोशिश की है। जहां एक ओर यह कदम भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद कर रहा है, वहीं दूसरी ओर यह भू-राजनीतिक समीकरणों में भी भारत की संतुलित कूटनीति का उदाहरण है। आने वाले समय में भारत को ऊर्जा विविधता, स्थिरता और रणनीतिक भंडारण पर और भी अधिक फोकस करना होगा, ताकि किसी भी वैश्विक संकट में देश की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत बनी रहे।