Indo US Relations : रूस से सस्ता तेल अब महंगा पड़ेगा, भारत पर अमेरिका की नई टैरिफ नीति
Headings
- 1 Monsoon Home Care Tips: बरसात में सीलन, बदबू और फंगस से ऐसे बचाएं अपना घर
- 1.0.1 Indo US Relations : भारत पर क्या होगा असर
- 1.0.2 Indo US Relations : अमेरिका क्यों बना रहा है यह दबाव
- 1.0.3 Indo US Relations : भारत की रणनीति क्या हो सकती है
- 1.0.4 Indo US Relations : तेल आयात पर भारत कितना खर्च करता है
- 1.0.5 Indo US Relations : क्या होगा वैश्विक बाजार पर असर
- 1.0.6 Indo US Relations : भारत क्या करेगा
(Tehelka Desk) Indo US Relations :
Russia–Ukraine युद्ध के बाद भारत समेत कई देशों ने रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया। इससे एक तरफ रूस को राजस्व मिला, वहीं भारत जैसे देशों को महंगाई से थोड़ी राहत भी मिली। लेकिन अब अमेरिका इस पर सख्त रुख अपनाने की तैयारी में है। खबरों के मुताबिक अमेरिकी सीनेट में एक नया बिल पेश होने जा रहा है, जिसमें रूस से तेल आयात करने वाले देशों पर भारी टैरिफ लगाने का प्रस्ताव है।
Indo US Relations : रूस से सस्ता तेल खरीदने पर अमेरिका को आपत्ति क्यों
रूस-यूक्रेन युद्ध फरवरी 2022 से जारी है। इसके बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए ताकि उसकी अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़े और युद्ध पर रोक लगे। लेकिन रूस ने अपनी रणनीति बदलते हुए एशियाई देशों को सस्ते दामों पर कच्चा तेल बेचना शुरू कर दिया। भारत और चीन रूस से बड़ी मात्रा में सस्ता कच्चा तेल खरीद रहे हैं।
इससे पश्चिमी देशों के प्रयासों को झटका लगा। रूस को लगातार तेल निर्यात से युद्ध के लिए फंडिंग मिलती रही, जो अमेरिका और यूरोप को खटक रहा है। ऐसे में अमेरिका चाहता है कि भारत समेत बाकी देश रूस से तेल खरीदने के बजाय कहीं और से तेल लें, भले ही उसकी कीमत ज्यादा क्यों न हो।
Indo US Relations : क्या है यह नया बिल, क्या होगा असर
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिकी सीनेट में एक बिल पेश किया जा सकता है, जिसके तहत रूस से कच्चा तेल या पेट्रोलियम उत्पाद खरीदने वाले देशों पर अमेरिका भारी इम्पोर्ट टैरिफ लगा सकता है।
खबरों के मुताबिक यह टैरिफ 500% तक हो सकता है, यानी अगर कोई कंपनी या रिफाइनरी रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदकर अमेरिका या अमेरिकी बाजार से जुड़ी सप्लाई चेन में बेचती है, तो उसे पांच गुना ज्यादा शुल्क चुकाना होगा।
इसका सीधा असर भारत की उन कंपनियों पर पड़ सकता है जो रूस से कच्चा तेल खरीदकर उसे प्रोसेस करके दुनिया के दूसरे देशों में बेचती हैं।
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Indo US Relations : भारत पर क्या होगा असर
भारत रूस से कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार बन चुका है। युद्ध से पहले भारत ज्यादातर खाड़ी देशों से तेल मंगाता था, लेकिन रूस ने भारत को डिस्काउंट देकर अपनी बिक्री कई गुना बढ़ा दी। इसके चलते भारत को पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर थोड़ी राहत मिली।
अगर अमेरिका का यह बिल पास होता है तो भारत को या तो रूस से तेल आयात कम करना पड़ेगा या अमेरिकी बाजार में बेचे जाने वाले पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर भारी टैक्स भरना होगा। इससे भारत के रिफाइनिंग सेक्टर पर सीधा असर पड़ सकता है।
Indo US Relations : अमेरिका क्यों बना रहा है यह दबाव
विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका नहीं चाहता कि रूस को युद्ध के लिए कोई फंडिंग मिले। रूस की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा तेल और गैस के निर्यात से चलता है। प्रतिबंध लगाने के बावजूद अगर देश रूस से सस्ता तेल खरीदते रहेंगे तो रूस पर दबाव नहीं बनेगा।
दूसरा कारण यह भी है कि अमेरिका अपनी तेल कंपनियों को भी फायदा पहुंचाना चाहता है। अगर भारत रूस से तेल नहीं खरीदेगा तो उसे अमेरिकी या खाड़ी देशों से महंगा तेल लेना पड़ेगा। इससे अमेरिकी तेल कंपनियों को बड़ा बाजार मिलेगा।
Indo US Relations : भारत की रणनीति क्या हो सकती है
भारत पहले भी साफ कर चुका है कि वह अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए किसी एक देश पर निर्भर नहीं रह सकता। भारत ने बार-बार कहा है कि वह अपने नागरिकों को सस्ती ऊर्जा देना चाहता है, और इसके लिए वह रूस से तेल खरीदने में हिचक नहीं करेगा।
अगर अमेरिका का नया बिल पास होता है तो भारत के पास तीन विकल्प होंगे:
रूस से तेल आयात कम करना और खाड़ी या अमेरिका से तेल लेना।
रूस से आयात जारी रखना, लेकिन अमेरिकी बाजार में पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स बेचने से परहेज करना।
अमेरिका से इस पर बातचीत कर छूट या राहत की मांग करना।
भारत की कूटनीति आने वाले दिनों में क्या रुख लेगी, यह देखना दिलचस्प होगा।
Indo US Relations : तेल आयात पर भारत कितना खर्च करता है
भारत अपनी कुल जरूरत का करीब 85% कच्चा तेल आयात करता है। इसमें रूस का हिस्सा अब 40% के आसपास है, जो युद्ध से पहले सिर्फ 2% था। सस्ता रूसी तेल भारत की तेल कंपनियों के मुनाफे और पेट्रोल-डीजल की कीमतों को काबू में रखने में मददगार रहा है।
अगर भारत को फिर से महंगा तेल खरीदना पड़ेगा तो इसका असर सीधा जनता की जेब पर पड़ेगा।
Indo US Relations : क्या होगा वैश्विक बाजार पर असर
अगर अमेरिका रूस के तेल पर नया टैरिफ लगाता है तो इससे ग्लोबल एनर्जी मार्केट में भी हलचल मचना तय है। तेल के दाम बढ़ सकते हैं। भारत और चीन जैसे बड़े खरीदार अगर रूस से दूरी बनाते हैं तो रूस को दूसरे ग्राहक ढूंढने पड़ेंगे। इससे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नया तनाव पैदा हो सकता है।
Indo US Relations : भारत क्या करेगा
भारत के लिए यह आसान फैसला नहीं होगा। सस्ता तेल लेना जरूरी है, लेकिन अमेरिका जैसे रणनीतिक साझेदार से रिश्ते भी खराब नहीं करना हैं। ऐसे में आने वाले हफ्तों में भारत को संतुलित विदेश नीति दिखानी होगी।
क्या भारत अमेरिकी दबाव में रूस से तेल खरीदना कम करेगा? या कोई नया रास्ता निकालेगा? इसका जवाब आने वाला वक्त ही देगा।