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Dehradun Student Suicide Case : परीक्षा में फेल होने पर छात्रा ने ली अपनी जान, अन्य परिजनों में शोक की लहर, 13% बच्चे करते है हत्या

Dehradun Student Suicide Case : (Tehelka Desk) उत्तराखंड बोर्ड की परीक्षा के नतीजे आ चुके है। जिसके बाद सभी बोर्ड परीक्षार्थियों में खुशी की लहर है। लेकिन कुछ छात्रों के चेहरे पर मायूसी नजर आ रही है। एक मामला राजधानी के डोईवाला से भी सामने आया है। जिसमें छात्रा ने परीक्षा में फेल होने पर आत्महत्या कर ली है।

जहां परीक्षा में फेल होने पर एक छात्रा ने बहुत बड़ा कदम उठा लिया। मामला राजधानी देहरादून के डोईवाला कोतवाली क्षेत्र के कुड़कावाला गांव का है। यहां 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली एक छात्रा ने परीक्षा में फेल होने पर आत्महत्या कर ली, जिससे पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। जैसे ही घटना की जानकारी मिली, पुलिस तुरंत मौके पर पहुंची और छात्रा के शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। फिलहाल पुलिस पूरे मामले की बारीकी से जांच कर रही है।

 

Dehradun Student Suicide Case : परिजनों में शोक और डर का माहौल

डोईवाला में हुई घटना से आसपास के परिजनों में डर का माहौल है। बता दें कि बोर्ड परिणाम आने के बाद से परिजनों की चिंता बढ़ती नजर आ रही है। क्योंकि डोईवाला से ऐसा ही मामला सामने आया है, जिसमें छात्रा ने परीक्षा में फेल होने पर आत्महत्या कर ली है। जिसके चलते आसपास के परिजनों में अपने बच्चों को लेकर चिंता है। कहीं उनके बच्चे जो बोर्ड में कम मार्क्स या फेल हुए है, वह इस तरह की घटना के चलते कोई गलत कदम ना उठा लें।

Dehradun Student Suicide Case : पुलिस कर रही जांच

पुलिस की जांच के अनुसार छात्रा ने मानसिक और भावात्मक रुप से परेशान होकर आत्महत्या का कदम उठाया है। जैसे ही परिजनों को इस घटना की सूचना मिलते ही वह छात्रा को जल्द ही नजदीकी अस्पताल जोलीग्रांट ले जाया गया। जहां पर डॉक्टरों ने छात्रा रको मृत घोषित किया। डोईवाला कोतवाली प्रभारी सी. शिशुपाल सिंह राणा ने जानकारी दी की शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। पुलिस छात्रा की आत्महत्या के कारण को खोज रही है।

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Dehradun Student Suicide Case : आत्महत्या समाधान नहीं है

यह मामला हमें सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या छात्रों पर जरूरत से ज्यादा प्रेशर है। हर साल किसी भी परीक्षा के बाद ऐसी खबरें आना आम बात हो गई है। छात्र एक बार फिर से प्रयास करने की जगह अपना जीवन खत्म करना ज्यादा सही समझते हैं। यहाँ ध्यान देने की बात है कि यह जिम्मेदारी किसकी है कि अपने बच्चों को समझाया जाए कि सफलता और असफलता ज़िंदगी के पड़ाव हैं, जिसमें हमें अपनी सूझ-बूझ से फैसला लेना होता है। आत्महत्या समस्या का हल नहीं है । असफलता मिलने पर खुद को मजबूत रखना होता है, सब कुछ नए सिरे से शुरू करके अपना लक्ष्य प्राप्त कर सबको गलत साबित करना होता है। बच्चों पर पढ़ाई का पहले से ही बहुत दबाव होता है। ऐसे में अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को यह विश्वास दिलाएं कि वे उनके साथ हैं। चाहे परिणाम कुछ भी हो। बच्चों से रोज़ बात करना, उनके विचार जानना, डर या तनाव को समझना बेहद ज़रूरी है। एक खुला संवाद कई बार आत्महत्या जैसे खतरनाक फैसलों को रोक सकता है। अपने अधूरे सपनों को बच्चों पर न थोपें। हर बच्चा अलग होता है उसकी रुचियां, क्षमताएं और गति अलग होती है। बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि असफलता एक अनुभव है, न कि अंत। सफल लोग भी असफल होते हैं. पर वे उससे सीखते हैं। परीक्षा के समय बच्चों की मानसिक स्थिति को नजरअंदाज न करें। अगर बच्चा ज्यादा चिड़चिड़ा हो रहा है, रोता है या अकेले रहना चाहता है — तो यह संकेत हो सकते हैं कि वह तनाव में है। अक्सर अभिभावक सिर्फ निर्देश देते हैं — “पढ़ाई करो”, “मोबाइल मत चलाओ”, “फेल हो जाओगे”। पर क्या वे सुनते हैं कि बच्चा क्या कह रहा है?

Nancy Rawat

Asst. News Producer

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