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BISSU GANIYAT Mahotsav : जौनसार में 130 साल पुराने बिस्सू गनियात महोत्सव की धूम, बुरांश के फूलों से सजे घरों ने बढ़ाई रौनक

BISSU GANIYAT Mahotsav : (Krishna Tyagi)  चकराता के पास बसे ठाणा डांडा गांव में हर साल की तरह इस बार भी बिस्सू गनियात पर्व ने पूरे माहौल को सांस्कृतिक रंगों से भर दिया। करीब 130 साल पुरानी इस परंपरा को गांववाले आज भी पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ निभा रहे हैं। त्यौहार के मौके पर लोग एक-दूसरे को गले लगाकर बधाइयाँ देते हैं, जिससे भाईचारा और आपसी प्रेम की भावना और ज्यादा बढ़ जाती है।

BISSU GANIYAT Mahotsav : इस खास दिन की सबसे खूबसूरत बात यह रही कि जो लोग रोजगार या पढ़ाई के चलते दूर रहते हैं, वे भी अपने गांव में लौट आए ताकि वे इस सांस्कृतिक पर्व में हिस्सा ले सकें। गांव की गलियों में रौनक देखने को मिली, घर बुरांस के फूलों से सजाए गए, और हर चेहरे पर खुशी दिखी। बिस्सू गनियात न सिर्फ एक पर्व है, बल्कि यह लोगों के दिलों को जोड़ने वाला उत्सव बन गया है, जो पुरानी परंपराओं को नई पीढ़ी से जोड़ने का काम करता है।

BISSU GANIYAT Mahotsav
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BISSU GANIYAT Mahotsav : बिस्सू गनियात पर्व की धूम

उत्तराखंड देवभूमि में त्योहारों और लोक परंपराओं को मनाने का जो अंदाज़ है, वह वाकई दिल को छू लेने वाला होता है। खासकर देहरादून जिले के जौनसार-बावर क्षेत्र में मनाया जाने वाला बिस्सू गनियात पर्व इसकी एक शानदार मिसाल है। संक्रांति के समय शुरू होने वाला यह पर्व न सिर्फ नए साल और नई फसल का स्वागत करता है, बल्कि अपनों से मिलने का बहाना भी बनाता है।

BISSU GANIYAT Mahotsav : दूर-दराज में काम करने वाले लोग भी इस मौके पर गांव लौट आते हैं, ताकि परिवार और समुदाय के साथ इस खुशी को बांट सकें। हर घर में चावल पीसकर पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं, जिनकी खुशबू ही त्योहार का एहसास करा देती है। बुरांश के फूल मंदिरों में चढ़ाए जाते हैं और घरों की शोभा बढ़ाते हैं। इन्हें शुभता का प्रतीक माना जाता है और यही रंग-बिरंगी परंपराएं इस पर्व को और भी खास बना देती हैं।

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BISSU GANIYAT Mahotsav : पर्व के जश्न में ढोल दमाऊं की थाप पर नृत्य

बिस्सू गनियात पर्व के दौरान, जौनसार-बावर के बुग्यालों में एक खास माहौल बन जाता है। यहां के लोग – महिलाएं, पुरुष, बच्चे, और युवा – सब एक साथ मिलकर पर्व की खुशियां बांटते हैं। महिलाएं अपनी पारंपरिक वेशभूषा में सजी होती हैं, और पुरुष ढोल-दमाऊं की थाप और रणसिंगे की गूंज में पारंपरिक नृत्य जैसे हारूल, तांदी, और झैता करते हुए गीतों पर थिरकते हैं। हर कोई एक-दूसरे को गले लगाकर बधाई देता है, और इस मौके पर हर दिल खुशी से झूम उठता है। बिस्सू गनियात का उत्सव उल्लास, प्रेम, और एकता से भरपूर होता है।

BISSU GANIYAT Mahotsav
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BISSU GANIYAT Mahotsav : 130 सालों से आज तक मनाया जा रहा है यह पर्व

BISSU GANIYAT Mahotsav : स्थानीय निवासी वीरेन्द्र जोशी बताते हैं कि बिस्सू गनियात पर्व को मनाने की परंपरा लगभग 130 साल पुरानी है। इस पर्व के दौरान लोग दूर-दूर से अपने घर लौटते हैं और एक-दूसरे से मिलकर खुशियां बांटते हैं। ठाणा गांव और बनगांव के लोग खासतौर पर इस मौके पर गाजे-बाजे के साथ पहुंचते हैं, जो इस उत्सव को और भी रंगीन बना देता है।

उनका मानना है कि सभी को अपने त्योहारों का जश्न अपने गांव में मनाना चाहिए, क्योंकि यह न सिर्फ सांस्कृतिक परंपराओं को जीवित रखता है, बल्कि हर किसी को अपने घर और समुदाय से एक गहरे जुड़ाव का अहसास भी कराता है।

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